आखिर क्या है वक्फ बोर्ड कानून? जिस पर संसद में छिड़ी है बहस!

Waqf Bill 2025: यह बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास हो चुका है, आइए समझते हैं कि आखिर ये नया कानून क्या है, क्यों लाया गया और इसका असर किस पर होगा।

Apr 11, 2025 - 14:59
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आखिर क्या है वक्फ बोर्ड कानून? जिस पर संसद में छिड़ी है बहस!

हाल ही में संसद में पारित वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस विधेयक को लेकर संसद में न सिर्फ लंबी बहस चली, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच तीखी नोकझोंक भी देखने को मिली। अब जबकि यह बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास हो चुका है, आइए समझते हैं कि आखिर ये नया कानून क्या है, क्यों लाया गया और इसका असर किस पर होगा।

वक्फ क्या है?

भारत में वक्फ एक धार्मिक संस्था है, जो इस्लामी परंपरा के अनुसार धर्मार्थ और धार्मिक कार्यों के लिए संपत्तियों को समर्पित करने की व्यवस्था को दर्शाता है। जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को वक्फ घोषित करता है, तो वह संपत्ति उस व्यक्ति की न रहकर अल्लाह के नाम पर मानी जाती है, और उसका प्रबंधन वक्फ बोर्ड या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति (मुतव्वली) द्वारा किया जाता है।

वर्तमान में भारत में वक्फ बोर्ड के अधीन लाखों संपत्तियाँ हैं। एक अनुमान के अनुसार देशभर में करीब 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियाँ वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आती हैं, जिनकी कुल कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। वक्फ संपत्तियों की इतनी अधिक संख्या और उनकी विशाल कीमत के कारण लंबे समय से इनके दुरुपयोग, अतिक्रमण और अवैध कब्जों की शिकायतें सामने आती रही हैं। साथ ही, वक्फ बोर्डों को बिना किसी अनिवार्य जांच के किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने की शक्ति मिलने से कई बार विवाद उत्पन्न हुए हैं।

क्यों लाया गया यह नया वक्फ संशोधन कानून

इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार ने वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने के उद्देश्य से यह नया विधेयक पेश किया। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य वक्फ बोर्डों के कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाना और उनके अधिकारों की सीमाओं को स्पष्ट करना है, ताकि मनमाने ढंग से संपत्तियों पर दावा करने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जा सके। इसके साथ ही इस बार पहली बार महिलाओं को वक्फ बोर्डों में प्रतिनिधित्व देने का भी प्रावधान किया गया है, जो एक बड़ी सामाजिक पहल मानी जा रही है।

विधेयक के अनुसार, अब कोई भी व्यक्ति तब तक वक्फ को संपत्ति दान नहीं कर सकेगा, जब तक वह कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन नहीं कर रहा हो। इसके अलावा, अब ऐसी किसी भी संपत्ति को वक्फ में शामिल नहीं किया जा सकेगा जिसमें विधवा, तलाकशुदा महिला या अनाथ बच्चों का अधिकार मौजूद हो। सरकार का कहना है कि यह नियम वंचित और असहाय वर्गों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।

इस संशोधित कानून के अंतर्गत अब वक्फ बोर्डों को सभी दावों के लिए अनिवार्य सत्यापन प्रक्रिया से गुजरना होगा। यह बदलाव उस स्थिति को बदलने के लिए किया गया है, जिसमें वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर देता था, और बाद में उस पर दावा करने वाले अन्य पक्षों को वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती थी। अब जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका भी वक्फ संपत्तियों की निगरानी में शामिल की जाएगी, ताकि प्रशासनिक स्तर पर भी निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।

इस कानून का नाम ‘उम्मीद’ रखा गया है, जो न सिर्फ एक कानूनी पहल है, बल्कि इसे मुस्लिम समुदाय के भीतर पारदर्शिता और सुधार की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है।

बढ़ते विरोध और राजनीतिक गर्माहट का माहौल

हालांकि, इस विधेयक को लेकर विरोध की आवाजें भी तेज़ हैं। विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह कानून धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप है और इससे मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ जाएगा। संसद के भीतर और बाहर कुछ सांसदों ने इस विधेयक के विरोध में काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन भी किया।
विरोध की एक प्रमुख वजह यह भी है कि वक्फ बोर्डों के अधिकारों में कटौती से उनकी स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2022 में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड द्वारा हिंदू बहुल क्षेत्र तिरुचेंदुरई गांव की ज़मीन पर दावा किया गया था, जिससे स्थानीय लोगों में नाराज़गी फैल गई थी। ऐसे मामलों के मद्देनज़र ही वक्फ बोर्डों की शक्तियों को सीमित करने और दावों की वैधता सुनिश्चित करने की आवश्यकता महसूस की गई।

उम्मीद की राह या नया विवाद?

कुल मिलाकर, वक्फ संशोधन विधेयक 2025 एक ऐतिहासिक और संवेदनशील पहल है, जो न केवल वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता की दिशा में कदम है, बल्कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व और सामाजिक संतुलन को बढ़ावा देने की कोशिश भी करता है। हालांकि, इसके प्रभाव और विरोध की तीव्रता को देखते हुए यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि यह कानून कितना सफल होगा। आने वाले समय में इस कानून का कार्यान्वयन और उस पर समाज की प्रतिक्रिया ही यह तय करेगी कि 'उम्मीद' वाकई में कितनों की उम्मीद बन पाएगा।