हमारे वायुमंडल की बढ़ती हुई 'प्यास'

Jun 19, 2025 - 11:55
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हमारे वायुमंडल की बढ़ती हुई 'प्यास'

दुनिया भर में सूखे की समस्या गंभीर और व्यापक होती जा रही हैं, लेकिन इसके लिए सिर्फ बारिश के पैटर्न में बदलाव जिम्मेदार नहीं है। विज्ञानियों लगाया है कि हमारे वायुमंडल की बढ़ती हुई 'प्यास' भी सूखे जैसे हालात पैदा करती है। पिछले चार दशकों (1981- 2022) में सूखे की गंभीरता में लगभग 40 प्रतिशत वृद्धि वायुमंडलीय प्यास की वजह से हुई है। विज्ञानी इस वायुमंडलीय प्यास को एटमास्फेरिक इवेपोरेटिव डिमांड ( एइडी) भी कहते हैं। नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है। कि यदि बारिश आपकी 'आय' है तो एइडी आपका 'खर्च' है। भले ही आपकी आय (वर्षा) वही रहे, लेकिन अगर आपका खर्च (एइडी) बढ़ता है, तो आपका बैलेंस घाटे में चला जाता है।

सूखे के साथ ठीक यही हो रहा है। वायुमंडल जमीन से ज्यादा पानी की मांग कर रहा है। जैसे-जैसे ग्रह गर्म होता है, यह मांग बढ़ती जाती है। वायुमंडल मिट्टी, नदियों, झीलों और यहां तक कि पौधों से भी ज्यादा नमी खींचता है। इस बढ़ती प्यास के कारण सूखे की समस्या गंभीर होती जा रही है। ऐसा उन इलाकों में भी हो रहा है जहां बारिश में बहुत ज्यादा कमी नहीं आई है। एइडी की प्रक्रिया बताती है कि वायुमंडल सतह से कितना पानी चाहता है। हवा जितनी ज्यादा गर्म, धूपदार, हवादार और शुष्क होगी, उसे उतने ही अधिक पानी की आवश्यकता होगी। इसलिए उन जगहों पर भी जहां बारिश में बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ है, हम सूखे की स्थिति को बदतर होते हुए देख रहे हैं। प्यासा वायुमंडल चीजों को तेजी से और अधिक तीव्रता से सुखा रहा है । नए विश्लेषण से पता चलता है कि एइडी न केवल मौजूदा सूखे को बदतर बनाती है, बल्कि यह सूखे से प्रभावित क्षेत्रों का विस्तार भी करती है।

 2018 से 2022 तक सूखे का सामना करने वाले वैश्विक भूमि क्षेत्र में 74 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और उस विस्तार का 58 प्रतिशत एइडी में वृद्धि के कारण था । नए अध्ययन के अनुसार 2022 चार दशकों में सबसे अधिक सूखाग्रस्त वर्ष रहा। दुनिया की 30 प्रतिशत से अधिक भूमि ने मध्यम से लेकर अत्यधिक सूखे की स्थिति का अनुभव किया। यूरोप और पूर्वी अफ्रीका में 2022 में सूखा ज्यादा गंभीर था । यह मुख्य रूप से एइडी में तेज वृद्धि के कारण था, जिसने उन जगहों पर भी सूखा उत्पन्न कर दिया जहां वर्षा में उल्लेखनीय गिरावट नहीं आई थी। इसने जल आपूर्ति, कृषि और ऊर्जा क्षेत्रों पर अभूतपूर्व दबाव डाला, जिससे आजीविका और आर्थिक स्थिरता को खतरा पैदा हो गया। इसलिए आने वाले समय में हमें सूखे से निपटने के लिए ठोस उपाय करने होंगे।

 विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब