शिमला समझौता क्या है? जिसको रद्द करने की गीदड़ भभकी दे रहा पाक

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ एक के बाद एक सख्त फैसले लिए हैं. सिंधु जल संधि को स्थगित करना, पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा न देना, और दिल्ली स्थित पाक उच्चायोग के स्टाफ की संख्या में कटौती जैसे कदमों से पाकिस्तान की शहबाज सरकार पर दबाव बढ़ गया है। भारत की इन कार्रवाइयों के जवाब में पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी की बैठक हुई, जिसमें भारत जैसे ही जवाबी कदम उठाने की बात कही गई।
सबसे चौंकाने वाला बयान यह रहा कि पाकिस्तान अब शिमला समझौते को ही रद्द करने की धमकी देने लगा है. अब सवाल यह है कि आखिर ये शिमला समझौता है क्या? शिमला समझौते की नींव भारत-पाक के बीच 1971 के युद्ध के बाद पड़ी थी. इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (अब बांग्लादेश) को आज़ाद करवाया था और पाकिस्तान की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था. करीब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिक भारत के कब्जे में आ गए थे. भारत ने पश्चिम पाकिस्तान के भी लगभग 5 हजार वर्ग मील क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया था. इस युद्ध के करीब 16 महीने बाद, 2 जुलाई 1972 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में यह ऐतिहासिक समझौता हुआ।
शिमला समझौता दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को सामान्य करने और भविष्य में किसी भी विवाद को शांति और संवाद के जरिए सुलझाने की प्रतिबद्धता है. इस समझौते में यह तय किया गया कि भारत और पाकिस्तान अपने सभी मुद्दों को आपसी बातचीत से हल करेंगे. किसी तीसरे देश या संस्था को इसमें हस्तक्षेप की इजाजत नहीं दी जाएगी। इस समझौते का एक अहम बिंदु यह भी था कि भारत और पाकिस्तान, कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) को एक-दूसरे की स्वीकृति के साथ मान्यता देंगे और इसे कोई भी पक्ष एकतरफा रूप से नहीं बदलेगा. दोनों देशों ने यह भी संकल्प लिया कि वे एक-दूसरे के खिलाफ बल प्रयोग, युद्ध या भ्रामक प्रचार का सहारा नहीं लेंगे. शांति बनाए रखेंगे और रिश्तों को बेहतर करेंगे। भारत ने इस समझौते के तहत 90 हजार पाक सैनिकों को बिना किसी शर्त के रिहा कर दिया और कब्जे वाले क्षेत्र को भी छोड़ दिया. वहीं पाकिस्तान ने भी कुछ भारतीय कैदियों को छोड़ा. लेकिन दशकों बाद आज जब भारत ने आतंकी गतिविधियों को लेकर पाकिस्तान को घेरा है और सिंधु जल संधि जैसे कदम उठाए हैं, तो पाकिस्तान उल्टा शिमला समझौते को ही हथियार बना रहा है।
पाकिस्तान की ओर से शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी केवल एक राजनीतिक हथकंडा है. भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि कश्मीर मुद्दा द्विपक्षीय है और शिमला समझौता इसका आधार है. इस समझौते को रद्द करने की धमकी देकर पाकिस्तान न केवल खुद की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि यह भी साबित कर देगा कि वह शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास नहीं करता।