खत्म हुई अठखेलियाँ

खत्म हुई अठखेलियाँ
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दुनिया मतलब की हुई, रहा नहीं संकोच।
हो कैसे बस फायदा, यही लगी है सोच॥ ●●●
औरों की जब बात हो, करते लाख बवाल।
बीती अपने आप पर, भूले सभी सवाल॥ ●●●
मतलब हो तो प्यार से, पूछ रहे वह हाल।
लेकिन बातें काम की, झट से जाते टाल॥ ●●●
लगी धर्म के नाम पर, बेमतलब की आग।
इक दूजे को डस रहे, अब जहरीले नाग॥ ●●●
नंगों से नंगा रखे, बे-मतलब व्यवहार।
बजा-बजाकर डुगडुगी, करते नाच हज़ार॥ ●●●
हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग।
अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग॥ ●●●
बचे कहाँ अब शेष हैं, रिश्ते थे जो ख़ास।
बस मतलब के वास्ते, डाल रहे सब घास॥ ●●● '
सौरभ' डीoसीo रेट से, रिश्तों के अनुबंध।
मतलब पूरा जो हुआ, टूट गए सम्बन्ध॥ ●●●
तेरी खातिर हों बुरे, नहीं बचे वे लोग।
समझ अरे तू बावरे, मतलब का संयोग॥ ●●●
रिश्तों में है बेड़ियाँ, मतलब भरे लगाव।
खत्म हुई अठखेलियाँ, गायब मन से चाव॥
—डॉo सत्यवान 'सौरभ' तितली है खामोश (दोहा संग्रह)