खत्म हुई अठखेलियाँ

Dec 2, 2024 - 19:43
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खत्म हुई अठखेलियाँ

खत्म हुई अठखेलियाँ

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दुनिया मतलब की हुई, रहा नहीं संकोच।

हो कैसे बस फायदा, यही लगी है सोच॥ ●●● 

औरों की जब बात हो, करते लाख बवाल।

बीती अपने आप पर, भूले सभी सवाल॥ ●●●

 मतलब हो तो प्यार से, पूछ रहे वह हाल।

लेकिन बातें काम की, झट से जाते टाल॥ ●●● 

लगी धर्म के नाम पर, बेमतलब की आग।

इक दूजे को डस रहे, अब जहरीले नाग॥ ●●● 

नंगों से नंगा रखे, बे-मतलब व्यवहार।

 बजा-बजाकर डुगडुगी, करते नाच हज़ार॥ ●●●

हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग।

अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग॥ ●●● 

बचे कहाँ अब शेष हैं, रिश्ते थे जो ख़ास।

बस मतलब के वास्ते, डाल रहे सब घास॥ ●●● '

सौरभ' डीoसीo रेट से, रिश्तों के अनुबंध।

मतलब पूरा जो हुआ, टूट गए सम्बन्ध॥ ●●● 

तेरी खातिर हों बुरे, नहीं बचे वे लोग।

 समझ अरे तू बावरे, मतलब का संयोग॥ ●●●

रिश्तों में है बेड़ियाँ, मतलब भरे लगाव।

खत्म हुई अठखेलियाँ, गायब मन से चाव॥ 

—डॉo सत्यवान 'सौरभ' तितली है खामोश (दोहा संग्रह)