नवरात्रि पर्व ( अश्विन ) द्वितीय दिवस -
नवरात्रि पर्व ( अश्विन ) द्वितीय दिवस -
माता पर आस्था का सुखद सौपान हैं । भुवाल माता पर विश्वास , आस्था ,श्रद्धा , अनाशक्त साधना का पहला सौपान हैं । मन की मजबूरियों का यही तो निदान हैं । उजला बनाती मन को आस्था की धारा भटकते पथिक को मिलता माता के स्मरण से शीघ्र किनारा अपने से होती अपनी हो हो अपने से होती अपनी पूरी पहचान है माता पर आस्था का सुखद सौपान हैं ।
खुद हैं यात्रा है जीवन की जटिल सी पहेली हल इसका देगी तेरी आतमा अकेली यही तो है उतर इसका हो हो यही तो उतर इसका यही समाधान है । माता पर आस्था का सुखद सौपान हैं । तन की आशक्ति घटाती माता पर ध्यान ध्याने की भावना लगती तब व्यर्थ सारी नाम की प्रभावना भावी आकांक्षाओं का हो हो भावी आकांक्षाओं का नहीं प्रावधान है ।
माता पर आस्था का सुखद सौपान हैं । भुवाल माता पर विश्वास , आस्था ,श्रद्धा , अनाशक्त साधना का पहला सौपान हैं । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )