जलवायु संकट और ‘इको विलेज'

Jun 16, 2025 - 10:09
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जलवायु संकट और ‘इको विलेज'

शहरीकरण और उपभोक्तावाद की बढ़ती संस्कृति ने पृथ्वी को संकट में डाल दिया है। आधुनिक जीवनशैली की यह होड़ हमारे पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव छोड़ रही है। ऐसे में इको- विलेज यानी पारिस्थितिकी गांव एक नए विकल्प के रूप में उभर रहे हैं, जो टिकाऊ जीवनशैली, आत्मनिर्भरता और पर्यावरणीय संतुलन को बढ़ावा देते हैं। दुनिया का पहला इको-विलेज स्काटलैंड के मोरे में 1985 में स्थापित किया गया था। इस इको- विलेज को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यहां सभी आवश्यक सुविधाएं और सेवाएं केवल 20 मिनट की पैदल या साइकिल की दूरी पर उपलब्ध हैं।

 इससे लोग निजी वाहनों के प्रयोग से कतराते हैं। एक इको-विलेज पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक सामंजस्य और व्यक्तिगत कल्याण को बढ़ावा देने की भावना पर केंद्रित होता है। ये लोगों को पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। भारत में भी ऐसे कई इको- विलेज हैं, जो पर्यावरणीय स्थिरता और आत्मनिर्भरता दोनों प्रदान करते हैं। राजस्थान का पिपलांत्री, नगालैंड का खोनोमा, तमिलनाडु का आरोविल देश के इको-विलेज के कुछ सफल उदाहरण हैं। पिपलांत्री में बेटी के जन्म पर पौधे लगाने की परंपरा ने गांव को आर्थिक एवं पर्यावरणीय रूप से आत्मनिर्भर बनाया है। इसी तरह नगालैंड स्थित खोनोमा को एशिया का पहला हरित गांव बनने का गौरव हासिल है। जैविक खेती, प्रभावी जल प्रबंधन और वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देकर यह गांव आज सफल इको- विलेज के रूप में स्थापित हो चुका है। इसी तरह तमिलनाडु का आरोविल गांव जीव-जंतुओं और पेड़- पौधों के प्रति अहिंसा की भावना का विकास कर सह-अस्तित्व कायम करने में जुटा है। इको-विलेज इस अवधारणा पर कार्य करता है कि इंसानी जीवनशैली से पर्यावरण को हानि न हो। यह लोगों को कम कार्बन जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इससे स्थानीय हवा, पानी और मिट्टी की स्वच्छता और शुद्धता कायम रहती है।

गांवों को इको-विलेज बनाने की आवश्यकता इसलिए भी अधिक है कि इको-विलेज आत्मनिर्भरता का विकास करने और स्वच्छ पर्यावरण के विकास और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने का अहम माध्यम साबित हो सकते हैं। आज अधिकांश गांवों ने शहर का स्वरूप ले लिया है। शहरी सुविधाओं की सुलभता ग्रामीण जीवन की सादगी और प्रकृति के साथ जुड़ाव को कहीं पीछे छोड़ दिया है। नतीजतन, पारंपरिक संसाधन-आधारित जीवनशैली, जो कभी पर्यावरण के अनुरूप हुआ करती थी, अब उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों की भेंट चढ़ रही है। ऐसे में इको-विलेज की अवधारणा न केवल एक टिकाऊ विकल्प प्रस्तुत करती है, बल्कि यह हमें हमारी जड़ों से भी जोड़ती है।

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट