विषय आमंत्रित रचना -परिवार

Apr 1, 2024 - 08:53
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विषय आमंत्रित रचना -परिवार
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विषय आमंत्रित रचना -परिवार ।

इंसान का जीवन हक़ीक़त में एक परिवार के इर्द - गिर्द ही रहता है।जन्म से लेकर मृत्यु तक निभाने पड़ते हैं तरह-तरह के परिवार के रिश्ते । यह जीवन एक बच्चे से शुरू होता है और दादा-नाना बनने के बाद सदा-सदा के लिये समाप्त हो जाता है।

एक बच्चे से शुरू हुआ जीवन दादा-नाना बनने तक के सफ़र में जीवन के हर रिश्ते को बख़ूबी निभाने वाला परिवार एक श्रेष्ठ परिवार का कहलाता है। एक समय था कि व्यक्ति अतिमितव्यता में भी अपने परिवार का लालन-पालन बड़े प्रेम से कर लेता था और अपनी आमदनी में से कुछ पैसे बचा कर अपने बच्चों के लिये गहने और जायदाद भी जोड़ लेता था।वो समय था सादा जीवन उच्च विचार।

इंसान बहुत सुखी और खुशहाल था।बड़ा और भरा पुरा परिवार होने के बावजूद मन में किसी चीज़ की कमी नहीं लगती थी।बड़ों के प्रति आदर और पारिवारिक सदस्यों में बहुत प्रेम था। जमाना तो बदला ही पर साथ में इंसान का सोच भी बदल गया।इस आर्थिक उन्नति के पीछे भागते हुये इंसान रिश्तों की मर्यादा भूल गया।

पहले भारतीय परिवारों में संयुक्त परिवार की परंपरा थी लेकिन आज विडंबना है कि एकल परिवारों का चलन निकल पड़ा है जो कि पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर प्रथक रहकर आजादी से रहने में शान समझते हैं। यह चिन्तनीय है । मुझे लगता है कि अधिकांश लोग इस जन्म की व्यवस्था और अपने परिवार वालों के भावी जीवन की चिंता में अपना पूरा जीवन समाप्त कर देते हैं।

इंसान सब कुछ जानते हुये भी अनजान बना रहता है कि कौन से ग़लत क़ार्य करने से पाप के क़र्म बंधते हैं और कौन से नेक क़ार्य करने से पुण्य करम अर्जित होते हैं। जब इस संसार में जन्म लिया है तो इस बात का हर समय स्मरण रहे कि मुझे मनुष्य जन्म मिला है।मुझे अपना यह जीवन सात्विकता के साथ जीना है और जानते हुये कोई ऐसा ग़लत क़ार्य नहीं करना जिससे पाप के करमों का बंधन हो।

 भगवान महावीर के पास गौतम आए तो अहंकार से थे परंतु भगवान को देखते ही पूरी तरह समर्पित हो गए ।झुक गए। झुक गए तो महान् हो गए ।अरहंत हो गए ।और गौशालक अहंकार के कारण झुक नहीं पाया तो अन्त तक कुछ भी नहीं पाया ।मीरा कृष्ण के प्रति इतनी झुक गई कि कृष्ण ने उसे अपने भीतर समाहित कर लिया। उसी प्रकार जीवन पथ पर बढ़ने के लिए जरूरी है झुकना ।

परिवार को जोड़े रखना है तो झुकना अर्थात नम्रता, विनयशीलता , सहनशीलता समर्पणता जरूरी है ।जिस तरह पहाड़ों पर चढ़ने के लिए लकड़ी या झुककर चलने की जरूरत होती है उसी तरह परिवार के जीवन में विनय ,समर्पण सद्भाव की जरूरत होती है जिससे सबका जीवन सुखमय ,शांति पूर्वक व तनाव रहित कट जाता है। प्रदीप छाजेड़

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