Article : जी राम जी: ग्रामीण भारत में विश्वास और उम्मीद
“जी राम जी: ग्रामीण भारत में विश्वास और उम्मीद”
जी राम जी’ योजना ने ग्रामीण भारत में भरोसा और विकास की नई मिसाल कायम की है। यह 125 करोड़ लाभार्थियों तक पहुँचती है, ग्रामीण रोजगार, स्थानीय उत्पादन, महिला सशक्तिकरण और खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करती है। भरोसा केवल घोषणाओं से नहीं, परिणाम और सतत क्रियान्वयन से बनता है। आलोचना यह भी है कि दीर्घकालिक आर्थिक आत्मनिर्भरता और स्थायित्व पर ध्यान जरूरी है। स्थानीय उद्योग, कौशल विकास और पारदर्शिता से यह योजना न केवल राहत, बल्कि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र में विश्वास का प्रतीक बन सकती है।
◆ डॉ. प्रियंका सौरभ
भारत की राजनीति में विश्वास केवल एक शब्द नहीं, बल्कि जन-धारणाओं और नीतिगत परिणामों का प्रतिफल है। ‘विकसित भारत–जी राम जी’ बिल और उससे जुड़ी योजनाएँ इस विश्वास की कसौटी पर खड़ी हैं। जब केंद्र सरकार ने यह बिल संसद में प्रस्तुत किया, तो उसके पीछे सतत विकास, सामाजिक न्याय और ग्रामीण कल्याण के विचार थे। यह बिल केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि 125 करोड़ लोगों तक पहुँचने वाली योजनाओं का प्रतीक है। वर्तमान सरकार का दृष्टिकोण स्पष्ट है—विकास को केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं रखा जाए। इसके लिए योजना का कायमी प्रभाव और पारदर्शी क्रियान्वयन आवश्यक है। इसके तहत ग्रामीण रोजगार, खाद्यान्न वितरण, महिला सशक्तिकरण और न्यूनतम आय सुरक्षा जैसी नीतियाँ लागू की गई हैं। इन नीतियों के परिणामस्वरूप ग्रामीण और वंचित वर्ग में भरोसा और उम्मीद दोनों बढ़ी हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था हमेशा असुरक्षित रही है। कृषि पर आधारित जीवन शैली, सीमित औद्योगिक विकास और मौसमी रोजगार की अस्थिरता ने ग्रामीणों को अस्थायी रोजगार और पलायन की ओर मजबूर किया। इस संदर्भ में, केंद्र सरकार की ग्रामीण रोजगार योजना एक जागरूक प्रयास है।
यह योजना न केवल रोजगार उपलब्ध कराती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय निर्माण और उत्पादन गतिविधियों को भी बढ़ावा देती है। महिलाओं की भागीदारी, युवा शक्ति का नियोजन और स्थानीय संसाधनों का उपयोग, योजना को स्थायी और प्रभावी बनाता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि ग्रामीण आर्थिक सुरक्षा महसूस करें और पलायन कम हो। महिलाओं का भाग्य सुधारना केवल सामाजिक न्याय का सवाल नहीं, बल्कि आर्थिक विकास और सामुदायिक स्थिरता का भी संकेत है। ‘जी राम जी’ योजना के तहत महिलाओं को रोज़गार और प्रशिक्षण के अवसर दिए गए हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जा सकता है—महिलाओं ने अपने परिवार की आय में योगदान बढ़ाया, स्थानीय उत्पादकता में हिस्सेदारी ली, और अपने समाज में निर्णय लेने की क्षमता विकसित की। महिला सशक्तिकरण का यह आयाम योजना की दीर्घकालिक सफलता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। जब महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है, तो परिवार के स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के मानक भी सुधरते हैं। इस तरह, योजना केवल आर्थिक सुधार तक सीमित नहीं रहती, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की नींव भी तैयार करती है। भारत में खाद्य सुरक्षा हमेशा सामाजिक राजनीति का केंद्र रही है।
गरीब और वंचित वर्ग को आवश्यक खाद्यान्न और न्यूनतम आय सुरक्षा प्रदान करना केवल दान या राहत नहीं, बल्कि न्याय और संवैधानिक जिम्मेदारी है। जी राम जी बिल ने इस दिशा में कदम बढ़ाए। 125 करोड़ लाभार्थियों तक पहुँचने वाली योजना का प्रत्यक्ष परिणाम यह है कि भोजन और आय का भरोसा पैदा हुआ है। गरीब वर्ग अब केवल दिन-प्रतिदिन के संघर्ष में नहीं फँसा है, बल्कि भविष्य की योजनाओं में भागीदारी और उम्मीद महसूस करता है। यह भरोसा सरकार और जनता के बीच संबंध की मजबूती का परिचायक है। सभी नीतियों में आलोचना होना स्वाभाविक है। विपक्ष ने सवाल उठाया है कि—क्या यह योजना दीर्घकालिक आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए पर्याप्त है? क्या यह केवल अस्थायी राहत है? क्या इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित है? इन सवालों का महत्व है। विकास केवल तुरंत परिणामों से मापा नहीं जा सकता। इसे स्थायित्व, निगरानी और समयबद्ध सुधार के साथ देखा जाना चाहिए। आलोचना यह भी याद दिलाती है कि राजनीतिक विश्वास स्थायी तभी बनता है जब योजना के परिणाम लगातार दिखाई दें और जनता के अनुभव से मेल खाते हों। राजनीतिक विश्वास केवल चुनावी रैलियों या भाषणों से नहीं बनता। यह तब मजबूत होता है जब जनता नतीजे देखे, अनुभव करे और महसूस करे। ‘जी राम जी’ योजना इस दृष्टि से अनूठी है—यह दिखाती है कि यदि सरकार व्यवस्था, नीति और क्रियान्वयन को संतुलित रखे, तो जनता का भरोसा बढ़ सकता है।
साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार सतत निगरानी और सुधार करती रहे। योजना की प्रभावशीलता तभी बनी रहती है जब स्थानीय प्रशासन, पंचायत और लाभार्थियों के बीच संवाद और जवाबदेही हो। यह लोकतांत्रिक शासन की सबसे बड़ी ताकत है। भरोसे और नीतियों की कसौटी पर ‘जी राम जी’ बिल ने एक नई मिसाल कायम की है। भविष्य में इसके और भी सफल होने के लिए कुछ कदम आवश्यक हैं। स्थायित्व और विस्तार: योजना को केवल वर्तमान लाभार्थियों तक सीमित न रखा जाए, बल्कि नई तकनीक और कौशल विकास के साथ इसे बढ़ाया जाए। पारदर्शिता: सरकारी योजनाओं में लाभार्थियों तक जानकारी, निगरानी और रिपोर्टिंग पारदर्शी हो। स्थानीय उद्योग और उत्पादन: रोजगार केवल सरकारी कार्यों तक सीमित न हो, बल्कि स्थानीय उद्योग और स्वरोज़गार को प्रोत्साहित किया जाए। महिला और युवा सशक्तिकरण: महिलाओं और युवाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए ताकि समुदाय आधारित विकास सुनिश्चित हो। अर्थव्यवस्था और विकास का संतुलन: योजनाओं से केवल रोजगार या राहत न हो, बल्कि स्थायी आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिले। ‘जी राम जी’ बिल और उससे जुड़ी योजनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि भरोसा और परिणाम राजनीति में दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। केवल घोषणाओं या भाषणों से जनता का विश्वास नहीं बनता। इसे क्रियान्वयन, पारदर्शिता और परिणाम के साथ जोड़ना आवश्यक है। इस पहल ने दिखाया कि यदि सरकार योजनाओं को समयबद्ध, प्रभावी और सतत तरीके से लागू करे, तो विश्वास केवल टिकता ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र और समाज की मजबूती का प्रतीक बन जाता है।
संक्षेप में, भरोसा केवल राजनीति का जरिया नहीं, बल्कि विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में एक स्थायी स्तंभ बन सकता है। ‘जी राम जी’ बिल इस कसौटी पर खड़ा होता दिख रहा है, और यदि इसे सुधार और सतत निगरानी के साथ आगे बढ़ाया जाए, तो यह भारत के ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक विश्वास का आदर्श मॉडल बन सकता है।