महायुद्ध की और बढ़ती दुनियाँ को शांति का पाठ पढ़ाए भारत

महायुद्ध की और बढ़ती दुनियाँ को शांति का पाठ पढ़ाए भारत
दुनियाँ के देश आपस में लड़कर जब महायुद्ध की और बढ़ रहे हो तब भारत को विश्व शांति के ईमानदार प्रयास करना चाहिए। भारत के प्रयासों से दुनियाँ में शांति स्थापित होती है तो दुनियाँ में भारत का मान-सम्मान बढ़ेगा। दुनियाँ के नागरिकों के दिलों में सनातन संस्कृति के प्रति आकर्षण बढ़ेगा, भारत के विश्व सिरमौर होने के रास्ते खुलेंगें। इस हेतू तैयार होने से पूर्व स्वयं को युद्ध से दूर रखना होगा, शांति का पाठ दुनियाँ को पढ़ाने के लिये भारत को अपनी सीमाओं को सुरक्षित और राष्ट्रीय एकता को मजबूत रखने की आवश्यकता है। दुनियाँ के जो हालात इस दौरान दिखाई पड़ रहे है, वह चौकाने वाले है। हर और हिंसक वातावरण नजर आ रहा है, धर्म, जाति, नस्ल और क्षेत्रीयता की उग्र भावनाओं से तबाही का मंजर आसमानों में आग के गोलो के रूप में दिखाई दे रहा है।
मानव निर्मित विकास की ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं को बारूद से उड़ाया जा रहा है। विगत 3 बरसों से अधिक हो गया रूस और युक्रेन युद्ध चल रहा है, इस युद्ध से मची तबाही के जो दृश्य मिडिया के माध्यम से देखने को मिल रहे है। वह बैचेन कर देने वाले है। तीन वर्षों से अधिक समय हो गया विश्व के ताकतवर देश रूस-युक्रेन युद्ध रुकवाने में असफल रहे है। इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध के बिच अब ईरान-इजराइल के मध्य खतरनाक मिसाइलो से धमाकों का क्रम जारी है। इन धमाकों से बड़े-बड़े विकसित शहरों को निशाना बनाया जा रहा है। बात परमाणु हथियारों के उपयोग तक पहुंच गयी है। मानव निर्मित विकास और समृद्धि के प्रतिमानों को शासकों की सनक की वजह से नेस्तानाबूत किया जा रहा है। इस बर्बादी के मंजर को रोकना, विश्वशांति और अमन की बात करने का यह उचित समय है। शान्ति मानव जाति के कल्याण एवं मानवता के हित में है। बारूद कभी भी मसलों का हल नहीं कर सकती, उसकी प्रकृति ही हिंसक है। बारूद से विनाश होता है, निर्माण नहीं, दुनियाँ को निर्माण की जरूरत है विनाश की कतई नहीं, जो विनाश में विश्वास रखते है वह मानवता के हितैषी कभी नहीं हो सकतें है। हमारी दुनियाँ शांति पसंद है। दुनियाँ और युद्धरत राष्ट्र की आम आवाम भी इन लडाईयों से चिंतित है। विवादित मसलों के निराकरण की प्रजातांत्रिक प्रक्रिया बैठक, वार्ता,गोलमेज और बातचीत है।
किंतु आवाम की इच्छा के विरुद्ध शासकों की सनक ने युद्ध के माध्यम से दुनियाँ को परेशान, चिंतित और भयभीत कर रखा है। विश्व पटल पर जारी युद्ध इससे पहले विश्व युद्ध या परमाणु युद्ध में तब्दील हो, शांति की मशाल जलाना बेहद अनिवार्य और आवश्यक है, स्वयं को दुनियाँ का नेता बताने वाले देश शांति की मशाल को जलाने में नाकाम हुए है, इन देशों के अपने स्वार्थ है, हथियारों के सौदागर मुल्को से अमन के चिराग जलाने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। ईरान इजरायल युद्ध के दौरान चीन ने अमेरिका पर आग में घी डालने के गंभीर आरोप लगाए है। चीन का उक्त आरोप कितना सही या गलत है इसके क्या मायने है? किंतु इतना तो कहा ही जा सकता है की अमेरिका न तो रूस-युक्रेन युद्ध में शांति स्थापित कर सका और न ही ईरान-इजरायल युद्ध में शांति स्थापित करने की स्थिति में है। रूस स्वयं युद्ध में उलझा हुआ है। दुनियाँ के दूसरे देश या तो किसी पक्ष के साथ खडे है या दुरी बनाकर चल रहे है। ऐसी स्थिति में भारत की जिम्मेदारी बनती है की वह महायुद्ध या परमाणु युद्ध की और बढ़ती दुनियाँ में शांति स्थापना के प्रयास करें। भारत ने पूर्व में भी विश्वशांति के प्रयासों में अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया है। भारत दुनियाँ का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक राष्ट्र है जो विश्व शांति का प्रबल समर्थक राष्ट्र होकर नागरिक स्वतन्त्रता और मानवता का पक्षधर है। भारत की सनातन परम्परा में भी विश्व कल्याण की भावना का समर्थन किया गया है। भारत के मंदिरो में प्रतिदिन होने वाली ईश्वरीय आराधना, पूजा पाठ आरती के दौरान लगने वाले जयकारों में धर्म की जय हो, अधर्म का नाश, प्राणियों में सदभावना हो, विश्व का कल्याण हो, के उच्च आदर्शो एवं मापदंडो का समावेश है। इससे बढ़कर ऋग्वेद का एक मंत्र जो विश्व कल्याण की कामना करता है, इसे शांति पाठ कहा जाता है, शांति पाठ का उक्त मंत्र ' ॐ द्यो शांति अंतिरिक्ष शान्तिः, पृथ्वीवी शांतिराप: शान्तिरोषधय शान्ति:, वनस्पतय: शान्ति विश्वेदेवा: शान्तिब्रह्म शान्ति:, सर्व शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मां शांतिरेधि।।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:। यह मंत्र वायुमंडल, पृथ्वी, जल, औषधियों, वनस्पतियों, सभी देवताओं, ब्रम्ह और सभी प्राणियों में शान्ति की कामना करता है। शान्ति पाठ का उदघोष भारत में प्रतिदिन पूजा पाठ और पवित्र कार्यो के दौरान होता है। इस महान संस्कृति और विचार से दुनियाँ को परिचित कराने के लिये भारत के नैतृत्व को चाहिए विश्व युद्ध की और बढ़ती दुनियाँ को युद्ध की विभीषिका से बचाए, दुनियाँ को इस बात से अवगत कराएं की युद्ध मानव सभ्यता को विनाश की और बढ़ाता है, जबकि शान्ति निर्माण की और अग्रसर करती है। दुनियाँ के इंसानों को विनाश की नहीं निर्माण की आवश्यकता है। दुनियाँ के सारे धर्म, पंथ, समुदाय शान्ति की भाषा को समझते है। मानवता ही परम धर्म है। भारत द्वारा इस दौरान किये शान्ति प्रयासों की दुनियाँ न सिर्फ सराहना करेंगी अपितु भारत की महत्ता को स्वीकार करेंगी। सनातन संस्कृति में शान्ति के महत्व की स्थापना के महान आशय को समझते हुए इस हेतू प्रयास किये जाने चाहिए। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नैतृत्व में शान्ति के प्रयास हेतू उसी तरह प्रतिनिधीमंडल भेजनें की आवश्यकता है। जैसे पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आंतकी ठिकानों को नेस्तनाबूत करने के बाद दुनियाँ के देशो में गए भारत के सर्वदलीय प्रतिनिधियों ने भारत के पक्ष को रखा, इसी तरह शान्ति के प्रयासों को ज़ब भारत का प्रतिनिधिमंडल विश्वपटल पर रखेगा तब भारत भी दुनियाँ के नागरिकों के दिलों में धड़केगा, मोदी की जय जयकार होंगी, भारत का दुनियाँ के सिरमौर बनने की दिशा में यह एक सार्थक कदम होगा।
ऐसे समय ज़ब दुनियाँ के ताकतवर देश अपने हथियारों की नुमाइश में लगे हो, अपने आर्थिक स्वार्थ के खातिर दुनियाँ की बर्बादी की और धकेल रहे हो भारत की भूमिका विश्व पटल पर बढ़ जाती है। वह शान्ति के प्रयास करें। भारत के ईमानदार प्रजातांत्रिक प्रयासों से दुनियाँ फिर अमन विकास और प्रगति की अग्रसर होंगी। भारत की मौलिकता और दर्शन भी यही है। ........... नरेंद्र तिवारी (स्वतंत्र लेखक)