UCC in Uttarakhand : देश का पहला राज्य बना जिसने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की
उत्तराखंड ने रचा इतिहास: देश का पहला राज्य बना जिसने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की
नई दिल्ली: सोमवार को उत्तराखंड ने इतिहास रचते हुए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बनकर एक नई मिसाल पेश की। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने UCC पोर्टल लॉन्च किया और संहिता लागू करने की अधिसूचना जारी की।
लॉन्च के दौरान मुख्यमंत्री धामी ने कहा, "समान नागरिक संहिता भेदभाव खत्म करने का एक संवैधानिक कदम है। इसके माध्यम से सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का प्रयास किया गया है। इसके लागू होने से महिलाओं का सशक्तिकरण सच्चे अर्थों में सुनिश्चित होगा। इसके जरिए हलाला, बहुविवाह, बाल विवाह, और तीन तलाक जैसी कुरीतियों को पूरी तरह समाप्त किया जा सकेगा। हमने संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित जनजातियों को इस संहिता से बाहर रखा है, ताकि उनकी परंपराएं और अधिकार संरक्षित रहें।"
उन्होंने आगे कहा, "मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि समान नागरिक संहिता किसी धर्म या संप्रदाय के खिलाफ नहीं है। यह किसी को भी निशाना बनाने के लिए नहीं बनाई गई है। इस ऐतिहासिक कदम का श्रेय देवभूमि उत्तराखंड के लोगों को जाता है, जिन्होंने हमें आशीर्वाद दिया और हमारी सरकार बनाई। आज UCC लागू करके हम संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर और संविधान सभा के सभी आदरणीय सदस्यों को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहे हैं। आज से उत्तराखंड के सभी नागरिकों के संवैधानिक और नागरिक अधिकार समान हो गए हैं, और सभी धर्मों की महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हो गए हैं।"
क्या है समान नागरिक संहिता (UCC)?
समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है जो विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों को एक समान बनाता है। यह विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार, और सहजीवन संबंधों जैसे विषयों को कवर करता है। इसका उद्देश्य सभी को समान संपत्ति अधिकार देना और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना है। गैर-अनुपालन पर दंड का प्रावधान भी किया गया है।
उत्तराखंड में UCC की मुख्य विशेषताएं
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विवाह: UCC के अनुसार केवल मानसिक रूप से सक्षम पुरुष (21 वर्ष) और महिलाएं (18 वर्ष), जो पहले से विवाहित नहीं हैं, ही कानूनी रूप से विवाह कर सकते हैं। विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार किया जा सकता है, लेकिन अब कानूनी मान्यता के लिए पंजीकरण अनिवार्य होगा।
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उत्तराधिकार: कानून वसीयत और परिशिष्ट बनाने और रद्द करने से संबंधित मामलों को भी नियंत्रित करता है।
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विवाह पंजीकरण: 26 मार्च 2010 से पहले किए गए विवाह या राज्य के बाहर संपन्न विवाह, यदि कानूनी शर्तें पूरी करते हैं, तो उनका पंजीकरण किया जा सकता है।
इस ऐतिहासिक कदम के साथ, उत्तराखंड ने समानता और कानूनी एकरूपता के क्षेत्र में पूरे देश के लिए एक नई मिसाल पेश की है।