काँटों पर नित चलो

Dec 4, 2024 - 15:31
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काँटों पर नित चलो
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काँटों पर नित चलो

अगर चाहो तुम सूरज बनना,

बनकर के दीप जलो।

गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥

जीवन के इस सफ़र में, न जाने कितने मोड़ मिलेंगे।

पग-पग मुश्किल रस्ता रोकेगी, कष्टों के झकझोर मिलेंगे॥

यदि मंज़िल को है चूमना, ना बाधा देख डरो।

गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥

फूलों का 'सौरभ' पाने हेतु, काँटों को प्रथम चुनना होगा।

न जाने कितनी बार गिरोगे, हर बार तुम्हें संभलना होगा॥

पड़े यदि सागर लांघना, बन के पवन कुमार उड़ो।

गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥

बढ़ते कदमों को फांसने, नियति अपना खेल रचेगी।

जीवन के इस महाभारत में, बाधाएँ चक्रव्यूह रचेगी॥

होना चाहो अमर यदि तो अभिमन्यु-सा वीर बनो।

गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥

मन-वचन-कर्म से तुमको, ये युद्ध लडऩा होगा।

लहराते विजय पताका, लक्ष्य की ओर बढऩा होगा॥

दुनिया जय-जय कार करेगी, उन्नति के शिखर चढ़ो।

गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥

 ● प्रियंका 'सौरभ' दीमक लगे गुलाब (काव्य संग्रह)