काँटों पर नित चलो
काँटों पर नित चलो
अगर चाहो तुम सूरज बनना,
बनकर के दीप जलो।
गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥
जीवन के इस सफ़र में, न जाने कितने मोड़ मिलेंगे।
पग-पग मुश्किल रस्ता रोकेगी, कष्टों के झकझोर मिलेंगे॥
यदि मंज़िल को है चूमना, ना बाधा देख डरो।
गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥
फूलों का 'सौरभ' पाने हेतु, काँटों को प्रथम चुनना होगा।
न जाने कितनी बार गिरोगे, हर बार तुम्हें संभलना होगा॥
पड़े यदि सागर लांघना, बन के पवन कुमार उड़ो।
गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥
बढ़ते कदमों को फांसने, नियति अपना खेल रचेगी।
जीवन के इस महाभारत में, बाधाएँ चक्रव्यूह रचेगी॥
होना चाहो अमर यदि तो अभिमन्यु-सा वीर बनो।
गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥
मन-वचन-कर्म से तुमको, ये युद्ध लडऩा होगा।
लहराते विजय पताका, लक्ष्य की ओर बढऩा होगा॥
दुनिया जय-जय कार करेगी, उन्नति के शिखर चढ़ो।
गर खिलना है फूलों-सा, काँटों पर नित चलो॥
● प्रियंका 'सौरभ' दीमक लगे गुलाब (काव्य संग्रह)