दो बातें विवेक की
दो बातें विवेक की
समझदार , विवेक।मात्र बड़ी - बड़ी बाते करने से ही कोई आदमी समझदार नहीं होता हैं बल्कि समझदार वह है जो जीवन में छोटी - छोटी बातों का महत्व कितना समझता है और अपने जीवन के आचरण में कितना लाता है ।
प्रश्न आता हैं कि विवेक किसको कहते है तो किसी सन्त ने उतर दिया की संसार में रहो लेकिन संसार को भीतर नहीं आने दो । कितना मार्मिक व गहराई से सन्त ने मनुष्य जीवन की सार्थकता पर प्रकाश डाला व आत्मा के मोक्ष मार्ग की और हमको प्रशस्त करने को कहा है । हमारे में दृढ़ता आए जिद नहीं , बहादुरी रहे जल्दबाजी नहीं , दया हो कमजोरी नहीं , ज्ञान हो अहंकार नहीं , करूणा रहे प्रतिशोध नहीं , निर्णायकता हो असमंजस नहीं ,जोश जज़्बा-होश जिससे जीवन में आगे बढ़े और सफलता का परचम लहराए। अरे !
सीधी सी बात हैं की हम भीड़ की राह न चलें अपने विवेक से राह चुनें और सही समय पर सही समझ और सही विवेक की शुद्ध कसौटी से जीवन में खरे आगे बढ़े और इस मास्टर चाबी ( समझदारी व विवेक ) से अहंकार को तिलांजलि दे। जो इंसान पूरे संसार में अत्मीयता और भाईचारा का संचार करता है उसी उदार की कीर्ति युग - युग तक गूँजती है।
धरती भी सदैव उसकी कृतघ्न रहती है। समस्त सृष्टि उस उदार की पूजा करती है और सरस्वती उसका बखान करती है।पूरी दुनिया पर उपकार करने की इक्षा ही सबसे बड़ा धन होता है। ईश्वर भी ऐसे लोगों के वश में हो जाते हैं। प्रदीप छाजेड़