यहाँ कुछ भी नहीं स्थायी

Aug 9, 2023 - 10:28
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यहाँ कुछ भी नहीं स्थायी

कुछ बनने को करना होगा संघर्ष । वर्धमान को भी झेलने पड़े थे कितने परिषह विकट ।

नहीं बने वें यूँही महावीर आज हमारे भगवन । राम को भी मिला चौदह वर्ष का वनवास ।विकट यात्रा रही ,युद्ध और जाने कितनी अड़चन । हर संघर्ष का किया समाना योद्धा बन । ठीक इसी तरह मानव जीवन एक संघर्ष की गाथा है । संघर्ष करते मनुष्य के सामने अनेक संकट आते है और उनमें सफलता भी मिलती है ।जो लोग डर कर संघर्ष करना छोड़ देते है तब संकट अधिक गहरा जाते है ।

और उन पर विजय पाना कठिन हो जाता है ।अतः संकटों से घबराने की जरूरत नहीं उनसे निपटने का विचार दृढ़ संकल्पित करना चाहिए। कष्ट चाहे कैसे भी हो उसका सही से समाधान सिर्फ एक ही है मज़बूत मनोबल ।संघर्ष आते है जीवन समर में वे प्रगति के लिए ज़मीन को और अधिक ठोस बना देते हैं। गांधीजी ने हमको यह दिखा दिया की अहिंसक होने के लिए बहुत साहस चाहिए।

 उन्होंने अहिंसा को करुणा से जोड़कर यह बताया की बुरा काम करने वालो को भी हमारी सद्दभावना की ज़रूरत होती है। अहिंसा की शक्ती ही सत्य की शक्ती है जो मानव को अभय का पाठ सिखाती है। मन के हारे हार है मन के जीते जीत।शरीर कितना भी हृष्ट पुष्ट हो, आसान सा कार्य हो लेकिन शरीर को कार्य करने के लिए प्रेरित करने वाला तो मन ही है। सारे कार्य मन के द्वारा ही तो संचालित होते हैं। मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।

ल रे जीवड़ा उठ बेठ्यां कियां सरसी उठ्यां पार पड़सी ।बचपन से इस तरह के मारवाड़ी कहावतें सुनने को मिलती हैं जब हमारी दादी, नानी आदि दिन भर के काम में थक कर बैठती थोड़ा सुस्ताती थी लेकिन फिर आगे का काम निपटाने को जहां इतनी थकान की शारीरिक वेदना भी हो रही होती तो भी मन की हिम्मत फिर उतना ही जोश भर देती हैं । यह शाश्वत मंत्र हम सदा याद रखें कि यह भी बीत जाएगा।

चाहे दुःख हो या सुख। प्रिय हो या अप्रिय स्थिति वह कभी स्थायी नहीं रहती हैं । आई है तो जाएगी ही विपत्ति। बस उस समय करो शांतचित्त हो सामना। इसे भी है बीतना ही बीतना।

प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)

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